Gaya में पिंडदान का महत्व हज़ारों सालों से है । Gaya एक ऐसा शहर जो बिहार में स्थित है और बिहार की दूसरी सबसे ज़्यादा आबादी वाला शहर है।यहाँ के बारे में आपको ज़रूर जानना चाहिए की वो सांस्कृतिक रूप से कितना समृद्ध है।
Gaya हमारे भारत की सनातन धर्म और उसकी संस्कृति को समेटे हुए है जो आपको एक बार जाने के लिए विवश कर देगी। गया प्राकृतिक रूप से भी काफ़ी सुंदर जगह है।
Gaya का नाम सुनते ही हमारे दिमाग़ में एक ही विचार आता है धर्म, जो बिल्कुल सही है, धार्मिक रूप से बहुत ही समृद्ध शहर है। हिंदू धर्म को मानने वाले श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
यह मूल रूप से फल्गु नदी के तट पर बसा हुआ एक धार्मिक शहर है।बोध गया, गया शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित है जहाँ भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था और बोधि वृक्ष यही पर है।
Gaya का महत्व इस बात से लगा सकते है की वाराणसी के बाद गया को भारत का दूसरा प्राचीन धार्मिक शहर माना है। इसका वर्णन प्राचीन भारत के इतिहास में भी मिलता है ,जैसे कि गया का वर्णन रामायण और महाभारत में भी हुआ है।
Gaya का इतिहास भगवान विष्णु से जुड़ा है और भगवान विष्णु के कई प्राचीन मंदिर गया में निर्मित है।गया को भगवान विष्णु की नगरी कहा जाता है।गया का इतिहास भगवान राम से भी जुड़ा हुआ है।
लेकिन गया / Gaya का मुख्य आकर्षण है, यहाँ के विष्णुपद मंदिर जो भगवान विष्णु के पद चिन्हों पे बनाए गए है और जो यहाँ पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है ।विष्णुपद मंदिर और इससे जुड़ी कथा के बारे में हम विस्तार से जानेंगे।
गया / Gaya का महत्व यहाँ होने वाले पिंडदान से भी है,शास्त्रों के अनुसार गया भगवान विष्णु की नगरी है और यहाँ पिंडदान करने से मौक्ष की प्राप्ति होती है क्योंकि यहाँ भगवान विष्णु, पितर-देवता के रूप में रहते है।
इन तथ्यों से आप समझ सकते हो की गया / Gaya धार्मिक रूप से कितना समृद्ध शहर है।हमारा देश भारत,दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता को संजोए हुए है,जब पूरी दुनिया खानाबदोश की ज़िंदगी जी रही थी तब भारत में एक उन्नत सभ्यता का जन्म हो चुका था।
गया / Gaya के बारे में जो भी जानकारियाँ है वो हज़ारों साल पुरानी है ।यहाँ ये बताने के लिए पर्याप्त है की सनातन धर्म और इसका इतिहास गौरवपूर्ण रहा है।
और प्रत्येक भारतीय को अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिए ।गया / Gaya उसी सनातन धर्म और इतिहास को संजोय धार्मिक नगरी है।शास्त्रों में कहा गया है की अंतिम संस्कार वाराणसी में और पिंडदान गया में करने से मौक्ष की प्राप्ति होती है।
गया / Gaya नाम कैसे पड़ा?
Gaya नगरी का नाम गयासुर के नाम पर पड़ा है, इसकी बड़ी रोचक कथा है, विष्णु पुराण के अनुसार गयासुर नाम का एक राक्षश हुआ करता था।
जो भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था, गयासुर ने भगवान विष्णु की तपस्या की और उन्हें प्रसन्न करके एक वरदान प्राप्त किया की जो भी गयासुर को देखेगा या उन्हें स्पर्श करेगा भले ही उसने जीवन में कितने भी पाप किए हो उसे बैकुंठ(भगवान विष्णु का लोक) की प्राप्ति होगी।
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गयासुर के इस वरदान की वजह से सभी पापी बैकुंठ धाम को जाने लगे जिससे परेशान होकर यमराज ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे अपनी दुविधा बतायी, उनकी बात को सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा की इसका निवारण भगवान विष्णु ही कर सकते है।
और वो भगवान शिव का आवाहन करने लगे, भगवान शिव जी को सारी बात बता कर ब्रह्मा जी शिव जी और यमराज भगवान विष्णु के पास बैकुंठ धाम पहुँचे और उन्हें सारी बात बता कर उनसे सहायता माँगी।
ब्रह्मा जी ने गयासुर से कहा की तुम पवित्र हो तो सभी ऋषि- मुनि और देव लोक के सभी देवता तुम्हारी पीठ पर बैठ कर यज्ञ करना चाहते है, जिसके लिए गयासुर तुरंत मान गये।
सभी देवता और भगवान विष्णु गयासुर की पीठ पर खड़े हो गए और गयासुर की पीठ पर एक बड़ा शिला रखा गया और यज्ञ करने लगे, आज भी ये शिला गया में ही है और इसे प्रेत शिला कहा जाता है।
गयासुर की इस भक्ति को देख कर भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने गयासुर से कहा की आज से इस स्थान को तुम्हारे नाम से जाना जाएगा और तुम्हारा नाम अमर हो जाएगा इस तरह इस स्थान का नाम गया पड़ा।
विष्णुपद मंदिर और इसकी महत्वता
पर्यटकों के लिए उनका मुख्य आकर्षण विष्णुपद मंदिर है ।फल्गु नदी के तट पर स्थित विष्णुपद मंदिर भगवान विष्णु के चरण कदमों के चिन्हों के ऊपर बनाया गया एक बहुत ही भव्य मंदिर है।
जिसके कारण इस मंदिर का नाम विष्णुपद( विष्णु -पद) मंदिर रखा गया है।हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रधालु यहाँ आते है और भगवान विष्णु की पूजा करते है।
यहाँ की मान्यता है की यहाँ पूजा करने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।भारत में मुग़लों और उसके बाद अंग्रेज शासन के समय इस मंदिर की भव्यता धूमिल पड़ने लगी थी
जिससे बाद में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर के द्वारा नवीनीकरण करवाया गया था। विष्णुपद मंदिर के अंदर भगवान विष्णु के 40 सेंटी मीटर लम्बी पद चिन्ह है।जिसके दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु हर वर्ष यहाँ आते है।
भगवान श्री राम और गया का सम्बंध
रामायण में हमें वर्णन मिलता है की महाराज दशरथ की मृत्यु के पश्चात भगवान श्री राम, लक्ष्मण जी और माता सीता के साथ गया आए थे और अपने पिता महाराज दशरथ का पिंडदान उन्होंने गया में फल्गु नदी के तट पर किया था, जिससे दशरथ जी को मौक्ष की प्राप्ति हुई।
अगर हम वर्तमान के गया की बात करे तो बिहार और झारखंड में यह एक इकलौता ऐसा शहर है जहाँ अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, साथ ही साथ गया रेल और सड़क मार्ग से भी सम्पूर्ण भारत से जुड़ा हुआ है।
Gaya के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा से आपको थाईलैंड के लिए सीधे हवाई सुविधा उपलब्ध है।यह धार्मिक रूप से जितना सम्पन्न है उतना ही प्रकृति का भी आशीर्वाद गया के ऊपर हमेशा रहा है,
यहाँ जीवन में एक बार ज़रूर जाएँ । यहाँ सूर्य मंदिर, मंगल गौरी मंदिर, बराबर गुफा, ब्रह्मयोनि पहाड़ी कोटेश्वरनाथ मंदिर, शिव मंदिर है।
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